तृतीय विश्व युद्ध की आकांक्षा - भाषण हिन्दी
युद्ध अशांति का द्योतक
युद्ध अशांति का द्योतक
छिनता सांसें बेकसूरों की
घृणा, इर्ष्या, अहं हैं जड़
बड़प्पन है अरमां उसकी
किसी भी युद्ध की शुरुआत एक छोटी सी गलती से होती है और खात्मा मूर्खता पर होती है।
युद्ध कभी भी शांति का परिचायक नहीं रहा। जब भी युद्ध हुए, जान-माल, प्रकृति, सम्पत्ति की क्षति हीं हुई। विगत युद्धों का उद्देश्य केवल बड़प्पन जाहिर करना रहा है। वर्तमान दुनिया में भी तीसरे विश्व युद्ध की आहट सुनाई पड़ रही है।
खैर;
आज विश्व समाज में शांति, परस्पर विश्वास व सद्भाव का वातावरण कायम करने के लिए एक और विश्व युद्ध की आवश्यकता महसूस हो रही है।
सुप्रभात!
आदरणीय प्राचार्य महोदय, शैक्षणिक प्रधान महोदय, शिक्षकवृंद एवं प्रिय साथियों, मैं अंकित कक्षा दसवीं का छात्र,तृतीय विश्व युद्ध की आकांक्षा विषय पर अपने विचार प्रस्तूत करने जा रहा हूं।
आप लोग सोच रहे होंगे, स्वयं मैं भी सोचा करता था, यह क्या पागलपन है? विश्व शांति के लिए एक और विश्व युद्ध?
विगत प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध का भयंकर हाड़कंपाने वाला नज़ारा, दुबारा भला कौन देखना चाहेगा? जो खासकर हिरोशिमा व नागासाकी में देखा गया था। पर मैं देखना चाहता हूं, शायद आप भी। बस जरूरत है नज़रिया बदलने की-
कहते हैं न-
“नज़रिया बदलिए नज़ारा बदल जाएगा।
दो दूनी चार का पहाड़ा बदल जाएगा।।”
श्रोताओं;
आज का सामाजिक परिदृश्य बेहद चिंतनीय है। चिंतनीय इसलिए कि आज के समय में पड़ोस कल्चर ICU में है। वहीं केकड़ा नीति अत्यधिक प्रचलन में है। पड़ोस कल्चर से हमारा तात्पर्य एक ऐसी संस्कृति से है जिसकी आत्मा “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात् पूरी धरती हीं अपना परिवार है जैसे सिद्धांत में बसी है। पड़ोस कल्चर में समाज का कोई भी व्यक्ति, समाज के हर व्यक्ति के उत्थान के बारे में चिंतन करता है। अगर आज फलां का लड़का ग़लत आचरण में संलिप्त है वह भी बेझिझक, बेधड़क , खुल्लेआम तो निश्चय हीं पड़ोस कल्चर समाप्ति के कगार पर है। वहीं केकड़ा नीति से हमारा तात्पर्य है - दूसरे व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकने जैसे कुविचार। आज समाज में एक व्यक्ति दूसरे के उत्थान में बाधक बन रहें हैं। समाज में ज्यादातर लोग स्वार्थोन्मुख हो चुके हैं। नैतिकता का आधार हीं समाप्त हो चुका है।
आज की आवोहवा के मद्देनजर किसी कवि ने उचित हीं लिखा है-
कैसी ये मनहूस घड़ी है, भाईयों में जंग छिड़ी है।
कहीं पे है खून कहीं पे ज्वाला, जाने क्या है होने वाला।।
आज सलामत कोई नहीं है, सबको लुट जाने का भय है।
रोती है सलमा रोती है सीता, रोते आज कुरान व गीता।।
प्रिय श्रोताओं,
हर तरफ भयावह स्थिति है। जिसे कमलेश्वर ने “कितने पाकिस्तान” नामक उपन्यास में कुछ इस तरह व्यक्त किया है-
“बंद कमरे में दम घुटी जाती है
खिड़कियां खोलता हूं तो जहरीली हवा आती है।”
साथियों,
परिवर्तन सब चाहता है, अविलंब परिवर्तन आज की जरूरत है जो मुझे लगता है, यह तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत से होगा।
पर यह विश्व युद्ध बड़प्पन दिखाने के लिए नहीं, गोली बारूदों से नहीं, जानों से नहीं परंतु सुविचारों से लड़ा जाएगा। इस विश्व युद्ध में कोई भी तटस्थ नहीं रहेगा। इसकी शुरुआत हर व्यक्ति के अंतर्मन से होगी। जहां कुविचारों का खात्मा सुविचारों की विजय होगी।
” चलिए विश्व युद्ध की शुरुआत करते हैं।
हर दिशा में शांति का सूर्योदय होने देते हैं।”
ऋग्वेद के इस मंत्र के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देना चाहूंगा।
"आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः" अर्थात् हमें सर्वत्र सभी ओर से कल्याणकारी विचार मिले।
धन्यवाद! आपका दिन शुभ हो! जय हिंद!
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