सुप्रभात!
परम आदरणीय प्राचार्य महोदय, शैक्षणिक प्रधान महोदय, आदरणीय गुरूजन एवं प्रिय साथियों
आज मैं __________ कक्षा _____ए /बी /सी का /की छात्र/ छात्रा,आपके समक्ष “हो गई है पीर पर्वत सी” नामक कविता प्रस्तुत करने जा रहा/ रही हूँ। यह कविता दुष्यंत कुमार द्वारा लिखी गई है।
यह कविता हमें आंदोलित करती है। मुझे यह कविता इसलिए पसंद है क्योंकि यह हमें बेहतर बदलाव के लिए आह्वान करती है।
मुझे उम्मीद है कि आपको यह कविता पसंद आएगी।
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
धन्यवाद!
आपका दिन शुभ हो! जय हिंद!
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